किसी कवि की रचना है, जो मेरा ध्यान बार बार इस विषय की ओर आकृष्ट करती है :-
“ हे राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था I
दस के दस चेहरे, सब "बाहर" रखता था II
रावण बनना भी कहां आसान I
रावण में अहंकार था, तो पश्चाताप भी था I
रावण में वासना थी, तो संयम भी था I
रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी,
तो बिना सहमति पराए स्त्री को स्पर्श न करने का संकल्प भी था I
सीता जीवित मिली ये राम की ताकत थी,
पर पवित्र मिली ये रावण की मर्यादा थी I
हे राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था I
दस के दस चेहरे, सब "बाहर" रखता था II
यह पंक्तियाँ आज के दौर में हमारे चरित्र, चिंतन, आचरण व व्यव्हार पर व्यंग नहीं हैं बल्कि हमारे लिए आइना हैंI
भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में युगों युगों से मानव सभ्यता के प्रेरणा श्रोत रहे है Iहमारी सनातन मान्यता के अनुसार श्रीराम विष्णु भगवान के अवतार हैं, वे आदिपुरुष हैं, जो मानव मात्र की भलाई के लिए मानवीय रूप में इस धरा पर अवतरित हुए। मानव अस्तित्व की कठिनाइयों तथा कष्टों का उन्होंने स्वयं वरण किया ताकि सामाजिक व नैतिक मूल्यों का संरक्षण किया जा सके तथा दुष्टों को दंड दिया जा सके। रामावतार भगवान विष्णु के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवतारों में सर्वोपरि है।
गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार श्रीराम नाम के दो अक्षरों में 'रा' तथा 'म' ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं, जैसा कि राम पूर्वतापिन्युपनिषद में कहा गया है-
रमन्ते योगिनोअनन्ते नित्यानंदे चिदात्मनि।
इति रामपदेनासौ परंब्रह्मभिधीयते।
संपूर्ण भारतीय समाज के लिए समान आदर्श के रूप में भगवान रामचन्द्र को उत्तर से लेकर दक्षिण तक सब लोगों ने स्वीकार किया है। गुरु गोविंदसिंहजी ने रामकथा लिखी है। पूर्व की ओर कृतिवास रामायण तो महाराष्ट्र में भावार्थ रामायण चलती है। हिन्दी में तुलसी दास जी की रामायण सर्वत्र प्रसिद्ध है ही, सुदूर दक्षिण में महाकवि कम्बन द्वारा लिखित कम्ब रामायण अत्यंत भक्तिपूर्ण ग्रंथ है। स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम ग्रंथों के विस्तार का वर्णन किया है-
नाना भांति राम अवतारा।
रामायण सत कोटि अपारा॥
मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी संबंधों को पूर्ण तथा उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के समान दूसरा कोई चरित्र नहीं है। आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान व धैर्य में हिमालय के समान हैं।
समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव।
हम राम के जीवन पर दृष्टि डालें तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती। जिस समय जैसा कार्य करना चाहिए राम ने उस समय वैसा ही किया। राम रीति, नीति, प्रीति तथा भीति सभी जानते हैं। राम परिपूर्ण हैं, आदर्श हैं। राम ने नियम, त्याग का एक आदर्श स्थापित किया है।
श्री राम ने ईश्वर होते हुए भी मानव का रूप रचकर मानव जाति को मानवता का पाठ पढ़ाया, मानवता का उत्कृष्ट आदर्श स्थापित किया।
श्रीराम का चरित्र नरत्व के लिए तेजोमय दीप स्तंभ है। वस्तुतः भगवान राम मर्यादा के परमादर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्रीराम सदैव कर्तव्यनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं। उन्होंने कभी भी लोक-मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रकट नहीं होने दिया। इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं।
वहीँ दूसरी तरफ रावण अपनी नराधम आसुरी प्रवृत्तियों के कारण पराभव को प्राप्त हुआ I रामायण के अनुसार रावण के पिता विश्रवा थे, जो ऋषि पुलत्स्य के पुत्र थे। रावण की माता कैकसी थी जो राक्षस कुल की थी इसलिए रावण ब्राह्मण पिता और राक्षसी माता का संतान था रावण ने. बाल्यकाल में ही रावण ने चारों वेद पर अपनी कुशाग्र बुद्धी से पकड बना ली, उसे ज्योतिषि का इतना अच्छा ज्ञान था कि, उसकी रावण संहिता आज भी ज्योतिषी में श्रेष्ठ मानी जाती है .रावण कई विद्याएं, वेद, पुराण, नीति, दर्शनशास्त्र, इंद्रजाल आदि में पारंगत होने के बावजूद भी उनकी प्रवृत्तियां राक्षसी थी और पूरे संसार में आतंक मचाता था।
रावण सर्व ज्ञानी था उसे हर एक चीज का अहसास होता था क्यों कि तंत्र विद्या का ज्ञाता था।रावण ने सिर्फ अपनी शक्ती एवम स्वय को सर्वश्रेष्ट साबित करने में सीता का अपहरण अपनी मर्यादा में रह कर किया।अपनी छाया तक उस पर नही पड़ने । रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। ऐसा माना जाता हैं कि रावण शंकर भगवान का बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।
महर्षि बाल्मीकि उसके गुणों को निष्पक्षता के साथ स्वीकार करते हुये उसे चारों वेदों का विश्वविख्यात ज्ञाता और महान विद्वान बताते हैं। वे अपने रामायण में हनुमान का रावण के दरबार में प्रवेश के समय लिखते हैं
अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:।
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता॥
आगे वे लिखते हैं "रावण को देखते ही राम मुग्ध हो जाते हैं और कहते हैं कि रूप, सौन्दर्य, धैर्य, कान्ति तथा सर्वलक्षणयुक्त होने पर भी यदि इस रावण में अधर्म बलवान न होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन जाता।"
रावण की सभा बौद्धिक संपदा के संरक्षण की केंद्र थी। उस काल में जितने भी श्रेष्ठजन थे, बुद्धिजीवी और कौशलकर्ता थे, रावण ने उनको अपने आश्रय में रखा था।
उस काल का श्रेष्ठ शिल्पी मय, जिसने स्वयं को विश्वकर्मा भी कहा, उसके दरबार में रहा। उसकाल की श्रेष्ठ पुरियों में रावण की राजधानी लंका की गणना होती थी - यथेन्द्रस्यामरावती। मय के साथ रावण ने वैवाहिक संबंध भी स्थापित किया। मय को विमान रचना का भी ज्ञान था। कुशल आयुर्वेदशास्त्री सुषेण उसके ही दरबार में था जो युद्धजन्य मूर्च्छा के उपचार में दक्ष था और भारतीय उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली सभी ओषधियों को उनके गुणधर्म तथा उपलब्धि स्थान सहित जानता था। शिशु रोग निवारण के लिए उसने पुख्ता प्रबंध किया था। स्वयं इस विषय पर ग्रंथों का प्रणयन भी किया।
श्रेष्ठ वृक्षायुर्वेद शास्त्री उसके यहां थे जो समस्त कामनाओं को पूरी करने वाली पर्यावरण की जनक वाटिकाओं का संरक्षण करते थे - सर्वकाफलैर्वृक्षै: संकुलोद्यान भूषिता। इस कार्य पर स्वयं उसने अपने पुत्र को तैनात किया था। उसके यहां रत्न के रूप में श्रेष्ठ गुप्तचर, श्रेष्ठ परामर्शद और कुलश संगीतज्ञ भी तैनात थे। अंतपुर में सैकड़ों औरतें भी वाद्यों से स्नेह रखती थीं।
उसके यहां श्रेष्ठ सड़क प्रबंधन था और इस कार्य पर दक्ष लोग तैनात थे तथा हाथी, घोड़े, रथों के संचालन को नियमित करते थे। वह प्रथमत: भोगों, संसाधनों के संग्रह और उनके प्रबंधन पर ध्यान देता था। इसी कारण नरवाहन कुबेर को कैलास की शरण लेनी पड़ी थी। उसका पुष्पक नामक विमान रावण के अधिकार में था और इसी कारण वह वायु या आकाशमार्ग उसकी सत्ता में था : यस्य तत् पुष्पकं नाम विमानं कामगं शुभम्। वीर्यावर्जितं भद्रे येन यामि विहायसम्।
उसने जल प्रबंधन पर पूरा ध्यान दिया, वह जहां भी जाता, नदियों के पानी को बांधने के उपक्रम में लगा रहता था : नद्यश्च स्तिमतोदका:, भवन्ति यत्र तत्राहं तिष्ठामि चरामि च। कैलास पर्वतोत्थान के उसके बल के प्रदर्शन का परिचायक है, वह 'माउंट लिफ्ट' प्रणाली का कदाचित प्रथम उदाहरण है। भारतीय मूर्तिकला में उसका यह स्वरूप बहुत लोकप्रिय रहा है। बस.. उसका अभिमान ही उसके पतन का कारण बना। वरना नीतिज्ञ ऐसा कि राम ने लक्ष्मण को उसके पास नीति ग्रहण के लिए भेजा था, विष्णुधर्मोत्तरपुराण में इसके संदर्भ विद्यमान हैं।"
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि रावण में तमाम बुराईयां थीं. पर ये भी जग जानता है कि वो प्रकांड पंडित था. उसने माता सीता का अपहरण जरुर किया, लेकिन वह उनकी स्वीकृति प्राप्त करने की कुचेष्टा करता रहा, परन्तु वर्षों तक बंधक रखते हुए भी उसने माता सीता को स्पर्श नहीं किया और उसका यह गुण व धैर्य प्रशंसनीय है I
जब भगवान राम ने उसका वध किया और रावण रणभूमि में आखिरी सांसें ले रहा था, तो भगवान राम ने लक्ष्मण को कुछ ज्ञान प्राप्त करने के लिए रावण के पास भेजा I मरने से पहले उसने लक्ष्मण को कुछ बातें सिखाई थीं. ये ऐसी बाते हैं, जो आपके-हमारे लिए आज के संदर्भ में भी उतनी ही सटीक हैं जितनी कि उस समय के लिए थीं-
1. अपने सारथी, दरबान, खानसामे और भाई से दुश्मनी मोल मत लीजिए. वे कभी भी नुकसान पहुंचा सकते हैं.
2. खुद को हमेशा विजेता मानने की गलती मत कीजिए, भले ही हर बार तुम्हारी जीत हो.
3. हमेशा उस मंत्री या साथी पर भरोसा कीजिए जो तुम्हारी आलोचना करती हो.
4. अपने दुश्मन को कभी कमजोर या छोटा म त समझिए, जैसा कि हनुमान के मामले में भूल हूई.
5. यह गुमान कभी मत पालिए कि आप किस्मत को हरा सकते हैं. भाग्य में जो लिखा होगा उसे तो भोगना ही पड़ेगा.
6. ईश्वर से प्रेम कीजिए या नफरत, लेकिन जो भी कीजिए , पूरी मजबूती और समर्पण के साथ.
7. जो राजा जीतना चाहता है, उसे लालच से दूर रहना सीखना होगा, वर्ना जीत मुमकिन नहीं.
8. राजा को बिना टाल-मटोल किए दूसरों की भलाई करने के लिए मिलने वाले छोटे से छोटे मौके को हाथ से नहीं निकलने देना चाहिए.
मर्यादा पुरुषोत्तम राम के चरित्र को भिन्न भिन्न माध्यमों से आम लोगो तक पहुचाने का कार्य हमारे साधू- संत, ऋषि – मुनि, कथावाचक सदियों से करते रहे है I हिन्दू परिवारों में राम चरित मानस का अखण्ड पाठ होता रहा है I सिनेमा और दूर संचार माध्यमों ने रामायण और राम को जन जन तक पहुचाने का काम किया है I
वर्तमान लॉक डाउन के दृष्टिगत सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिक रामायण का पुनरप्रशारण किया जा रहा है I
बेहद दुखद है कि जिस देश व समाज में मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने जन्म लिया और परम आदर्श के रूप में प्रतिष्ठित होकर हमारे परम आराध्य बने, और जिनके चरित्र को आज भी देश व समाज में घर घर पढ़ा व गाया जाता है, उसी देश व समाज में उनके आदर्शों का बुरा हाल है I
हम श्री राम के चरित्र को पढ़ते और गाते तो जरुर हैं, लेकिन अपने आचरण, चरित्र व जीवन में उसका अंश मात्र भी धारण नहीं करते हैं I यह भी कम दुर्भाग्यपूर्ण नहीं नै कि समाज का अध्यात्मिक पथ प्रदर्शन करने वाले कुछ कथित छद्मवेशी संतों, संस्थाओं व धर्माचार्यों ने अपने चरित्र, आचरण व व्यव्हार से दानवों के राजा रावण को भी शर्मिंदा कर दिया I समाज में बढ़ती राक्षसी प्रवृत्तियां श्री राम के युग के असुर सम्राट रावण में भी नहीं दिखती हैं I आज समाज में जिस तरह से शोषण, हिंसा, अत्याचार, दुराचार और अन्याय की प्रवृत्ति बढ़ी है I जिस तरह से लोगों ने रिश्तों को दागदार किया है, उसे देखकर रावण भी हतप्रभ होगाI
आज कदाचित हम इन्हीं प्रवृत्तियों के कारण प्रकृति द्वारा दण्डित किये जा रहे हैं I यदि समाज में सदाचार, सद्भावना , सद्प्रवृति और सद्बुद्धि नहीं जागी तो आने वाले समय में हमें इससे भी बड़ी त्रासदी के लिए तैयार रहना होगाI
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