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  • Writer's pictureMan Bahadur Singh

बंगाल चुनाव में बी.जे.पी. का प्रदर्शन

चूंकि मैं राजनीति शास्त्र का विद्यार्थी नहीं रहा हूँ, और ऐसे भी फौजियों को राजनीति की कम ही समझ होती है, इसलिये बंगाल मे बी.जे.पी. की पराजय और लोकतंत्र (दीदी) की विजय का विश्लेषण और गैर बी.जे.पी. दलों द्वारा मनाया जा रहा जश्न मुझे ठीक से समझ नहीं आ रहा है।


वर्ष 2016 मे बंगाल में 3 सीट से खाता खोलने वाली पार्टी बंगाल में दसकों तक राजकाज करने वाली कांग्रेस और बाम दलों का सूपड़ा साफ कर के 77 सीट पर काबिज हो जाती है। एकमात्र विपक्षी दल के रूप में स्थापित होती है। फिर भी पराजित बताई जा रही है।


मजेदार बात यह है कि अन्य राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दल, जिनका सूपड़ा साफ हो गया, एक उम्मीदवार नहीं जिता सकीं, वह जीत का जश्न मना रही हैं। यह गणित समझ से परे है। यह आचरण भी समझ से परे है। आखिर राजनीति के भी तो कुछ मानक होने चाहिए, कुछ मर्यादा होनी चाहिए। खैर जब समाज में ही मर्यादा का अकाल पड़ गया हो तो और किसी से क्या अपेक्षा की जाए।


वैसे इस जीत का जश्न तो बंगाल में कल से ही चल रहा है। उसकी झलकियां भी कल से ही देखने को मिल रही हैं। ऐसा ही जश्न लोग पूरे देश में देखना चाहते हैं तो, ईश्वर उनकी मनोकामना देर सबेर जरूर पूरी करेंगे।


मुझे विश्वास है कि विश्लेषण करने वाले और जश्न मनाने वाले ज्यादातर लोग न तो बंगाल में रहे हैं और न ही बंगाल की (अ) भद्र राजनीति को जानते हैं। मैं अपनी सैन्य सेवा के दौरान झारखंड और बंगाल और पूर्वोत्तर मे चार वर्ष रहा हूँ और कोलकाता, दुर्गापुर और बाकुडा मे बीसीओं वर्ष तक आना जाना रहा है।


मैं अपने व्यक्तिगत अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि बंगाल के परिणाम किसी संयोग नहीं बल्कि घातक (आत्मघातक) प्रयोग का परिणाम है। मुझे किसी पार्टी की चिंता नहीं है, लेकिन ऐसे प्रयोग से देश की दशा और दिशा पर क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका नीर क्षीर विश्लेषण हर भारतीय को करना चाहिए।

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