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Writer's pictureMan Bahadur Singh

धारयति इति धर्मः

Updated: Jun 13, 2024



राम मन्दिर पर विपक्ष और कुछेक मुस्लिम नेताओं का विधवा विलाप दुर्भाग्यपूर्ण है और देश, राष्ट्र को खंडित करने का प्रयास है. मेरा दृढ निश्चय है कि सनातन धर्म आडम्बर नहीं है बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड और जीव जगत के सह- अस्तित्व की व्यवस्था का विज्ञान है I


यदि हम सनातन धर्म को देखें तो पाएंगे की यह कोई पंथ या सम्प्रदाय नहीं है बल्कि जीवन पद्धति है. वेद, पुराणों और धर्म ग्रंथों में धर्म का शाब्दिक अर्थ देखें तो हम पाते हैं कि जो धारण करने योग्य है, वही धर्म है।

"धारयति इति धर्मः।"


प्रश्न यह है कि धारण क्या किया जाये

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः। धीर्विद्या सत्यमक्रोधो, दशकं धर्मलक्षणम् ॥


(धृति (धैर्य), क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना), दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना), अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरंग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग), विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा), सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस मानव धर्म के लक्षण हैं।)


जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ नहीं करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि, परेषां न समाचरेत् ॥

(धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये।)


मुझे लगता है कि यदि हम इतना भी समझ जाएँ और अपने जीवन में इनका अनुकरण कर लें तो हमें जीवन में कभी हार का सामना नहीं करना पड़ेगा I भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में युगों युगों से मानव सभ्यता के प्रेरणा श्रोत रहे है I हमारी सनातन मान्यता के अनुसार श्रीराम विष्णु भगवान के अवतार हैं, वे आदिपुरुष हैं, जो मानव मात्र की भलाई के लिए मानवीय रूप में इस धरा पर अवतरित हुए। मानव अस्तित्व की कठिनाइयों तथा कष्टों का उन्होंने स्वयं वरण किया ताकि सामाजिक व नैतिक मूल्यों का संरक्षण किया जा सके तथा दुष्टों को दंड दिया जा सके। रामावतार भगवान विष्णु के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अवतारों में सर्वोपरि है।


गोस्वामी तुलसीदास के अनुसार श्रीराम नाम के दो अक्षरों में 'रा' तथा 'म' ताली की आवाज की तरह हैं, जो संदेह के पंछियों को हमसे दूर ले जाती हैं। ये हमें देवत्व शक्ति के प्रति विश्वास से ओत-प्रोत करते हैं। इस प्रकार वेदांत वैद्य जिस अनंत सच्चिदानंद तत्व में योगिवृंद रमण करते हैं उसी को परम ब्रह्म श्रीराम कहते हैं, जैसा कि राम पूर्वतापिन्युपनिषद में कहा गया है-

रमन्ते योगिनोअनन्ते नित्यानंदे चिदात्मनि। इति रामपदेनासौ परंब्रह्मभिधीयते।


संपूर्ण भारतीय समाज के लिए समान आदर्श के रूप में भगवान रामचन्द्र को उत्तर से लेकर दक्षिण तक सब लोगों ने स्वीकार किया है। गुरु गोविंदसिंहजी ने रामकथा लिखी है। पूर्व की ओर कृतिवास रामायण तो महाराष्ट्र में भावार्थ रामायण चलती है। हिन्दी में तुलसी दास जी की रामायण सर्वत्र प्रसिद्ध है ही, सुदूर दक्षिण में महाकवि कम्बन द्वारा लिखित कम्ब रामायण अत्यंत भक्तिपूर्ण ग्रंथ है। स्वयं गोस्वामी जी ने रामचरितमानस में राम ग्रंथों के विस्तार का वर्णन किया है-

नाना भांति राम अवतारा। रामायण सत कोटि अपारा॥


मनुष्य के जीवन में आने वाले सभी संबंधों को पूर्ण तथा उत्तम रूप से निभाने की शिक्षा देने वाले प्रभु श्री रामचन्द्रजी के समान दूसरा कोई चरित्र नहीं है। आदि कवि वाल्मीकि ने उनके संबंध में कहा है कि वे गाम्भीर्य में समुद्र के समान व धैर्य में हिमालय के समान हैं।

समुद्र इव गाम्भीर्ये धैर्यण हिमवानिव।


हम राम के जीवन पर दृष्टि डालें तो उसमें कहीं भी अपूर्णता दृष्टिगोचर नहीं होती। जिस समय जैसा कार्य करना चाहिए राम ने उस समय वैसा ही किया। राम रीति, नीति, प्रीति तथा भीति सभी जानते हैं। राम परिपूर्ण हैं, आदर्श हैं। राम ने नियम, त्याग का एक आदर्श स्थापित किया है। श्री राम ने ईश्वर होते हुए भी मानव का रूप रचकर मानव जाति को मानवता का पाठ पढ़ाया, मानवता का उत्कृष्ट आदर्श स्थापित किया।


श्रीराम का चरित्र नरत्व के लिए तेजोमय दीप स्तंभ है। वस्तुतः भगवान राम मर्यादा के परमादर्श के रूप में प्रतिष्ठित हैं। श्रीराम सदैव कर्तव्यनिष्ठा के प्रति आस्थावान रहे हैं। उन्होंने कभी भी लोक-मर्यादा के प्रति दौर्बल्य प्रकट नहीं होने दिया। इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में श्रीराम सर्वत्र व्याप्त हैं।


यह इस देश का दुर्भाग्य है कि हिंदुस्तान में हिन्दुओ के परम आराध्य श्री राम की जन्म स्थली पिछले ५०० वर्षों से अतिक्रमित की हुयी थी और सर्वोच्च न्यायलय के आदेश के बावजूद कुछ कट्टरपंथी मुस्लिम नेता और कुछ विपक्षी दल इस पर विधवा विलाप कर रहे है.


इस देश के सामान्य मुसलमान को कभी हिन्दुओं से या भगवान राम से परहेज़ नहीं रहा है और न ही किसी हिन्दू को कभी किसी पीर, औलिया , दरगाह या मस्जिद से परहेज़ रहा है. आज भी पीरों की मजारों पर, दरगाहों में बहुत सरे हिन्दू अपनी अरदास लेकर जाते है.


मुझे याद है कि बचपन में हमारे नाम की ताजिया बनती थी, हम रात भर ताजिये के साथ रहते थे और दुसरे दिन ताजिये को कन्धा देकर कर्बला तक जाते थे. आज वो रवायते, वो विश्वाश लगभग ख़त्म हो गईं हैं . किसने ख़त्म किया. अकेले हिन्दू ने या अकेले मुसलमान ने. नहीं इसमे दोनों की भूमिका रही है. सबसे अधिक स्वार्थी राजनेताओं और फर्जी सेक्युलर नेताओं ने देश और समाज को बांटने का कम किया है.


इस देश के मुसलमानों को भी पता है कि वह मिश्र, अरब , ईरान, तुर्की , मंगोलिया या मध्य एशिया से नहीं आये हैं. बल्कि उनके पूर्वज इसी देश की मिटटी में पैदा हुए थे. जो इन देशो से आये थे, वे राज काज करके वापस चले गए. उनके जुल्मो सितम से परेशान होकर जिन्होंने इस्लाम कुबूल कर लिया, वह अपनी मिटटी और संस्कृति से जुड़े रहे.


मेरा सम्बन्ध उस आजमगढ़ से है, जिसे १६६५ में राजपूत शासक विक्रमजीत की मुस्लिम पत्नी से उत्पन्न पुत्र राजकुमार आज़म के नाम पर बसाया गया. पूर्वांचल के सबसे नामचीन इस्लामिक स्कॉलर अल्लामा शिबली नोमानी के परदादा हिन्दू राजपूत थे. आज भी जैगहा बाज़ार में बिन्द्वल जयराजपुर मार्ग पर लगे बोर्ड पर अल्लामा शिबली नोमानी के परदादा का हिन्दू नाम लिखा हुआ है. आजमगढ़ के तमाम राजपूत मुसलमान आज भी अपनी बिरादरी के साथ खान पान और सद्भावना रखते हैं. हमारी जड़ें एक हैं. आम मुसलमान खुश है की सैकड़ो साल का विवाद ख़त्म हुआ और हिन्दुओं को उनके अराध्य राम का जन्म स्थान मिल गया, लेकिन फर्जी सेक्युलर लोग और लोगों की लाशों पर रोटी सकने वाले राजनेता और राजनितिक दल व्यथित हो उठे हैं.

समाज को धर्म, जाति, पंथ और संप्रदाय के नाम पर बांटने वाले लोगों और दलों से सावधान रहने की जरुरत है. धर्म के मर्म को समझने और जीवन में उसे धारण करने की जरुरत है, तभी देश, समाज और राष्ट्र सशक्त हो सकेगा.

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5 Comments


Kushagra Dubey
Kushagra Dubey
Aug 17, 2024

आपका शायद ही कोई तथ्य या कथन होगा जिससे किसी की पूर्ण सहमति नहीं होगी, मैं बस इतना ज़रूर जोड़ना चाहूँगा की गत ११ वर्षों में मुसलमानों के प्रति प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से भेदभाव व अपराधों में जो अद्वितीय वृद्धि हुई है वह भी हिंदू धर्म की आड़ लेकर ही हुई है और जब तक हम श्री राम के पूर्ण निष्ठ सनातनी भक्तजन इन कृत्यों की सार्वजनिक रूप से भरसना नहीं करेंगे तब तक हम सच्चे सनातनी कहलाने की पात्रता नहीं रखेंगे। सिर्फ़ एक परिवार में पैदा हो जाने से अगर हम सनातनी अपने को मान ने लगेंगे तो आप ही के द्वारा इंगित १० धर्म लक्षणों की महत्त्वता को वास्तविक आचरण में झुठलाकर सबसे बड़ा पाखंड करेंगे।

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Unknown member
Mar 26, 2024

ऐसी पोस्ट के लिए आभार... आपको विनम्र प्रणाम 🙏

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Unknown member
Dec 26, 2022

*धारयति इति धर्मः!*

इस वाक्य को जो कि सुभाषा की ही समःकृत यानी संस्कृत में लिखा गया है, को एकदम गलत समझाया गया है। इसका अर्थ जो सुभाषा (गलत नाम हिंदी )में विस्तार से बताने का प्रयास किया गया है वह भी गलत है, क्योंकि, एक तो, इस वाक्य में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ गलत लगाये/बताए गये हैं और ऊपर से उन अर्थों को आधार बनाकर बताए गये अर्थ-ज्ञान भी प्रचलित लगाए व बताए गये हैं दूसरे तथाकथित विद्वानों नें अपनी ओर से भी बहुत कुछ ऐसा जोड़ दिया गया है जो निरर्थक ,निराधार, नकारात्मक और दुष्प्रभावी है। कुछ भी ऐसा जो सुनने में अच्छा ,सरल मधुर और लयमय लगे तो वह सही और सत्य ही हो यह निष्कर्ष सही…


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Kushagra Dubey
Kushagra Dubey
Aug 17, 2024
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हम सभी को व्याकरण एवं भाषाज्ञान द्वारा उपर्युक्त संस्कृत वाक्य का सही मर्म समझाने के लिए सादर धन्यवाद। लेखक ने आपके द्वारा समझाए वाक्य के आगे सुधर्म के १० लक्षणों को उल्लेखित करते हुए अन्य वाक्य भी जोड़े हैं और इन तीनों वाक्यों के समुचित अर्थ से आपके द्वारा उठाये प्रश्नों का निवारण होता है।

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Unknown member
Nov 29, 2022

आपकी कई बातों से सहमत हूँ लेकिन आप ही बताइए कि राम मंदिर के नाम पर जो भी राजनीति हुई और उसके कारण हुए दंगों मे जितना रक्तपात हुआ वह किस दृष्टिकोण से धर्म था? क्या वो आचरण धारण करने योग्य था?

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