मध्यप्रदेश में इन्दौर से लगभग 90 किलोमीटर दूर नर्मदा नदी के तट पर स्थित ओंकारेश्वर महादेव भारत मे प्रतिष्ठित बारह ज्योतिर्लिंगों मे से एक है औऱ आस्था का एक बड़ा केंद्र है।
प्राकृतिक तौर पर भी ओंकारेश्वर एक मनमोहक स्थान है। लेकिन यह लोगों की आस्था ही है, जो लोगों को ओंकारेश्वर खींच कर लाती है। देव स्थान पर जाने वाले हर आस्थावान व्यक्ति की अपेक्षा होती है कि वह अपने ईष्ट का इत्मीनान से दर्शन पूजन कर सके, परिसर मे कुछ देर बैठ कर वहाँ की ऊर्जा को महसूस कर सके।
हम भी इसी आस्था व विश्वास के साथ महाकालेश्वर, उज्जैन व ओंकारेश्वर के दर्शनार्थ पहुंचे।
यद्यपि आस्था किसी व्यवस्था की मोहताज नहीं होती, लेकिन व्यवस्था का फर्क तो पड़ता ही है। ऐसा मुझे लगा।
महाकालेश्वर, उज्जैन की व्यवस्था प्रशंसनीय है। गर्भगृह के सामने बैठने की व्यवस्था दिव्य है। वहाँ बैठकर वास्तव मे एक दिव्य अनुभूति होती है। मुस्तैद सुरक्षा व्यवस्था, साफ सफाई, जगह जगह पीने के पानी की व्यवस्था व मंदिर परिसर मे जगह जगह लगी टी.वी. स्क्रीन पर गर्भगृह का हो रहा लाइव प्रसारण श्रद्धालुओं को अपने ईष्ट से निरन्तर जुड़े रहने मे बेहद मददगार हैं। महाकालेश्वर मे मुझे वास्तव मे बहुत शान्ति व सकून महसूस हुआ।
महाकालेश्वर से जब मैं ओंकारेश्वर के लिए निकला तो कदाचित वहाँ की भी ऐसी ही तस्वीर मेरे मन मे उभर रही थी। वहाँ की प्राकृतिक सुन्दरता मन को प्रफुल्लित कर रही थी परन्तु मां नर्मदा के घाट पर पहुंचते पहुंचते यह तस्वीर धूमिल होने लगी। हम मोटर बोट से मां नर्मदा के उस घाट पर पहुंचे, जहाँ से उपर ओंकारेश्वर मंदिर की चढ़ाई आरम्भ होती है।
हमें घाट पर उतरते ही एक पंडा जी मिल गए, जो हमें सीधे महादेव के पास ले चलने की बात करने लगे, वो भी महज 300/- प्रति व्यक्ति। उन्हें मना किए तो दूसरे, तीसरे कुल दसियों आफर। हम कतार मे लगकर दर्शन करने का निर्णय लिए। घाट पर सीढ़ियों के दोनों तरफ फूल औऱ प्रसाद बेचने की दूकाने थीं। साफ सफाई तो नाम मात्र भी नहीं थी।
दुकानदार हमें देखते ही महज एक रूपए मे फूल पत्र की डलिया का आफर देने लगे। मुझे लगा कि यहाँ कुछ तो अच्छा है। मात्र एक रूपए मे फूल पत्र की डलिया मुझे पूरे हिन्दुस्तान मे कहीं नहीं मिली थी। हमने फूल की डलिया ले ली, लेकिन यह क्या, डलिया के उपर प्रसाद का एक डब्बा भी। हमने भोले बाबा का जयघोष किया औऱ पूछा कि इसी एक रुपए मे ये प्रसाद भी है, तो दुकानदार महिला बोली कि नहीं बाबूजी, प्रसाद के 100/- अलग से देने पड़ेंगे। अकेले फूल की डलिया नहीं मिलेगी। डलिया मे नीचे कागज रखे थे, उपर से फूल पत्र का छिड़काव किया गया था। मैं दुकानदारों की मार्केटिंग की प्रतिभा का कायल हो चुका था।
खैर 101/- का प्रसाद व फूलों (कागज) से भरी डलिया लेकर हम.उपर पहुंचे औऱ कतार मे लग गए।
लेकिन यह क्या। ना कोई सुरक्षा, ना कोई व्यवस्था, ना कोई पुलिस, ना कोई प्रशासन। लाइन भी क्या थी, एक लाइन की जगह मे तीन- चार लाइनें। पूरी धक्का मुक्की, जो चाहे आगे निकल जाए। ना कोई रोकने वाला, ना कोई देखने वाला। पूरी व्यवस्था (अव्यवस्था) पण्डा जी लोगों द्वारा संचालित।
खैर हमने भी अपने बाहुबल का प्रयोग किया औऱ अपने लिए तथा बच्चों के लिए घेरा बनाए। मेरी पत्नी अपने बाहुबल का प्रदर्शन करते हुए हमसे चार कदम आगे थीं। इस दौरान भी पण्डा जी लोग वी.आई. पी. दर्शन का आफर देते रहे, लेकिन हमने भी निश्चय कर लिया था कि हम हार नहीं मानेंगे।
लगभग दो घंटे सतत मल्लयुद्ध के बाद हम गर्भगृह मे पहुंचे। हमारी नजरें शिवलिंग को खोज ही रही थीं कि एक जोरदार धक्के ने हमें गर्भगृह से बाहर ढ़केल दिया। बाहर निकलते (लुढ़कते) हुए महज एक क्षण के लिए सहसा शिवलिंग पर दृष्टि पड़ गई वरना मैं यह कहने लायक भी नहीं बचता कि हमने ओंकारेश्वर महादेव के दर्शन किए हैं।
खैर बाहर निकलते ही सांस मे सांस आई। सामने नजर पड़ी तो देखा कि नन्दी जी फुरसत मे विराजमान थे। हम उनके पास पहुंचे औऱ उन्हें अपनी कथा व्यथा सुनाकर ममलेश्वर महादेव के लिए प्रस्थान कर दिए।
मुझे यह कहने मे कोई संकोच नहीं है कि यहाँ आकर मुझे न तो शान्ति मिली न वह ऊर्जा, जिसकी चाहत मे हम आये थे।
मेरा मन मुझसे बार बार यह प्रश्न कर रहा है कि क्या आस्था औऱ व्यवस्था मे परस्पर कोई सम्बंध है?
मुझे लगता है कि आस्था औऱ व्यवस्था परस्पर समानुपाती (directly proportional) हैं। यद्यपि यह गणित का विषय नहीं है, तथापि किसी देव स्थान की व्यवस्था से कम से कम मेरे जैसे श्रद्धालुओं की आस्था तो जरूर प्रभावित होती है। यद्यपि इसका कोई प्रभाव द्रृष्टिगत न हो, परन्तु इसके दीर्घकालिक प्रभाव अवश्यम्भावी हैं।
यदि मेरी बात ओंकारेश्वर महादेव के पण्डा समाज व मध्यप्रदेश सरकार तक पहुँच जाए, तो मैं अपेक्षा करता हूँ कि समाज व सरकार इस ज्योतिर्लिंग परिसर की व्यवस्था पर ध्यान दें ताकि मेरे जैसे श्रद्धालुओं की आस्था बनी रहे औऱ वह बार बार इस पीठ पर अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करने आते रहें।
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