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  • Writer's pictureMan Bahadur Singh

चार धाम यात्रा : कुछ खट्टे मीठे और कड़वे अनुभव

Updated: Jun 14

ऋषिकेश से 3 जून 2024 को चार धाम यात्रा प्रारम्भ कर के हम लगभग 1500 किलोमीटर हिमालयन क्षेत्र में यात्रा करने के बाद वापसी के अंतिम पड़ाव ऋषिकेश पहुंच गए हैं।



इस दौरान हम न केवल चार धामों पर गए बल्कि रास्ते में पड़ने वाले कुछ अन्य देव स्थानों पर भी गए। हिमालय के इस भाग में उगे पेड़, पौधों और वनस्पतियों को नजदीक से देखने समझने का भी मौका मिला। यहां के पहाड़ों पर बसे गांवों को भी देखने का मौका मिला। यहां के लोग बिना किसी बोर वेल या ट्यूब वेल के पहाड़ों के गर्भ से निकल रही जलधाराओं के शुद्धतम जल का उपयोग करते हैं, वह मन को आनंदित कर दिया। इतने शुद्ध, शीतल और मधुर जल की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।


पूरे हिमालयन क्षेत्र में सैकड़ों फुट ऊंचे चीड़, देवदार और सदाबहार वृक्ष हमें मंत्रमुग्ध कर देते हैं। इन जंगलों में नाना प्रकार के फलदार वृक्ष भी हैं जो पूरे वर्ष लोगों के भोजन की आपूर्ति करने के लिए पर्याप्त हैं। चीड़ और देवदार के बीज बेहद पौष्टिक और बहुमूल्य हैं। लोग पहाड़ों के स्लोप पर स्थानीय अनाज और फल भी उगा रहे हैं। पूरा हिमालय औषधीय वनस्पतियों से आच्छादित है। पहाड़ में जीवन यापन की एक आत्मनिर्भर प्रणाली उपलब्ध है। हिमालय न केवल उत्तराखंड के लिए, भारत के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए ऑक्सीजन का सिलेंडर है। यहां से निकली जलधाराएं, जिन्हें सनातन संस्कृति ने मां का दर्जा दिया है, वह आज भी करोड़ों लोगों की प्यास बुझा रही हैं। हिमालय पूरी धरा के पर्यावरण को संतुलित कर रहा है।


परन्तु अफसोस है कि हम इन जंगलों, पहाड़ों और जीवन दायिनी जलधाराओं (माताओं) के साथ जो कुछ कर रहे हैं और जो कुछ इनके साथ हो रहा है, वह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। बताने की जरूरत नहीं है कि चार धाम यात्रा प्रारम्भ होने के प्रथम सप्ताह में यहां किस तरह की भीड़ उमड़ी और उसका क्या दुष्प्रभाव हमारे पर्यावरण, जंगलों, पहाड़ों और नदियों को झेलना पड़ रहा है। हम भूल जाते हैं कि हमारी इन करतूतों का परिणाम आने वाले समय में हमें ही भोगना पड़ेगा।


पूरे चार धाम यात्रा में हमने देखा कि यहां आने वाली भीड़ में 80 से 90 प्रतिशत हिस्सा हमारे नवयुवकों का है, जिनमें से अधिकांश कदाचित एडवेंचर और तफ़री के लिए इन धामों पर आ रहे हैं। अधिकांश लोगों के व्यवहार, भाषा व आचरण से ऐसा नहीं लगा, वे धार्मिक आस्था, श्रद्धा या विश्वास के वशीभूत होकर यहां पहुंचे हैं। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि नवयुवकों में धार्मिक आस्था, श्रद्धा और विश्वास नहीं होता। मेरा सुझाव होगा कि ऐसे नवयुवक, जो एडवेंचर के लिए चार धाम आ रहे हैं, वे किन्हीं अन्य ट्रेकिंग साइट्स का चुनाव कर सकते हैं, जहां एडवेंचर के बेहतर एवेन्यूज उपलब्ध हैं।


चार धाम या इन पहाड़ों की सहनशक्ति से बहुत ज्यादा पर्यटक यहां आ रहे हैं, जो न केवल इन धामों, पहाड़ों, जंगलों और नदियों के साथ अन्याय है बल्कि हमारे भविष्य के लिए अभिशाप साबित होगा।


अब प्रश्न यह है कि हमारे चार धामों में जो पंडा, पुजारी व धर्मार्थ ट्रस्ट व संस्थाएं हैं, वह क्या कर रही हैं। क्या वह हमारे प्रचंड आस्था, श्रद्धा और विश्वास का पोषण कर रहे हैं या हमारा दोहन कर रहे हैं, शोषण कर रहे हैं और व्यापार कर रहे हैं?


मुझे बहुत दुःख से कहना पड़ रहा है कि हमारे पंडा, पुजारी वा संस्थाएं हम यात्रियों का दोहन और शोषण ही कर रही हैं। यहां तक कि केदारनाथ और बद्रीनाथ के अभिषेक के बाद बाहर विषर्जित हो रहे जल, जिसकी एक बूंद हम अपने होठों पर रखना चाहते हैं और अपने माथे पर लगाना चाहते हैं, उसे भी 51 से 101 रुपए में वहीं बैठे पंडा पुजारी बेच रहे हैं। मुझे कोई ऐसा मंदिर नहीं मिला, जहां बैठा पुजारी बिना चढ़ावे के आपके हाथ पर प्रसाद का दो दाना रख दे। 1500 किलोमीटर की यात्रा में चार धाम संस्थाओं, धर्मार्थ ट्रस्टों या किसी पंडा पुजारी समूह द्वारा लगाया गया लंगर या कोई अन्य निःशुल्क सेवा कम से कम मुझे नहीं दिखी।


लेकिन मुझे बहुत अच्छा लगा कि ऋषिकेश से गोबिंद घाट तक हेमकुंड साहिब धाम जाने वाले यात्रियों के लिए सिख समुदाय द्वारा लगभग हर 20 से 30 किलोमीटर की दूरी पर लंगर लगाया गया है, जहां सेवादार रास्ते से गुजरने वाले हर यात्री से अनुरोध कर रहे हैं कि, आप वहां रुककर प्रसाद ग्रहण करें।


आज समय कम है, आगे सरकार के स्तर से किए गए इंतजामात के बारे में भी अपने विचार साझा करेंगे।



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