चीन एशिया मे ही नहीं, पूरे विश्व में अपना दबदबा कायम रखने की नीति पर काम करता रहा। हमारे साथ ही आजाद होने के बाद चीन ने जिस तरह से हर क्षेत्र में आत्म निर्भरता हासिल की है, वह अनुकरणीय है।
चीन ने जिस तरह सैन्य उपकरणों, साजोसामान, मिसाइल, विमान, राडार से लेकर एअरक्राफ्ट कैरियर तक के निर्माण में महारत हासिल की है, वह बेमिसाल है।
चीन एशिया मे ही नहीं पूरी दुनिया में दादागिरी का इरादा रखता है। और कर भी रहा है। चीन हमेशा से हमें अपमानित करके हमें हमारी औकात का एहसास कराता रहा है और यह समझाने का प्रयास करता रहा है कि हम उसके पिछलग्गू बने रहें। हम बार बार अपमानित होने के बावजूद भी अपने को इस लायक नहीं बना पाए कि चीन हमारी चेतावनी को गम्भीरता से ले। कुल सहमति के बाद भी वह हमारे क्षेत्र से नहीं हटेगा। हटेगा भी तो अपनी शर्तों पर। जाते जाते भी हमारी कुछ जमीन हड़प लेगा।
यह हमारा दुर्भाग्य है कि आज जब वह हमारी जमीन हड़पते जा रहा है, हम राफेल के आने का इन्तजार कर रहे हैं। हम रुस से लड़ाकू विमान और साजोसामान मांग रहे हैं। हम इजरायल से बम, मिसाइल और मानवरहित विमान खरीदने के लिये दौड़ रहे हैं। अमेरिका से तोप, टैंक और अपाचे हेलीकॉप्टर ले रहे हैं। एअरफोर्स मे पिछले कई दशकों से लडाकू विमानों की भारी कमी रही है। हम अपनी न्यूनतम जरूरत भर के स्क्वाड्रन भी मेन्टेन नहीं कर पा रहे हैं। हम आज भी मिग 21 और अन्य तीसरी पीढ़ी के विमानों के साथ लड़ाई की हुंकार भर रहे हैं।
मुझे अपनी सेनाओं पर रत्ती भर भी शक नहीं है। वह अपने लहू के आखिरी कतरे तक देश की आन बान और शान पर आंच नहीं आने देंगी।
यह भी तय है कि हमें चीन और पाकिस्तान दोनों सीमाओं पर एक साथ लड़ना पड़ेगा। हमें कोई गफलत नहीं होनी चाहिए। जंग हमें अपने दम पर लड़ना होगा। कोई दूसरा देश आपकी लडाई लड़ने नहीं आएगा। बम, मिसाइल, जहाज और उपकरण जरूर बेचेगा।
हमारी रगों में जिस तरह खून की जगह भ्रष्टाचार बह रहा है, हम समय रहते इसका इलाज नहीं किए और सेनाओं की जरुरतों को पूरा किए बिना जंग मे गए तो अपेक्षित परिणाम शायद ही मिले। चीन को सबक सिखाना है तो सैन्य बलों को मजबूत करने के साथ साथ हमे अपने आर्थिक तन्त्र को भी मजबूत करना होगा, हर क्षेत्र में आत्म निर्भर बनना होगा।
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