
गड्ढामुक्त उत्तर प्रदेश की झलक देखने और हिमालयन कार रैली का रोमांच प्राप्त करने की हार्दिक इच्छा हो तो, इलाहाबाद से आजमगढ़ की यात्रा करें।
मैं 2004 से नियमित आजमगढ़ की यात्रा करता रहा हूँ।160 किलोमीटर की दूरी कभी 6 घंटे, कभी 7 घंटे और कभी 8 घंटे मे तय होती रही। 17 वर्ष में कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन आजमगढ़ की त्रासदी आज भी जस की तस है।
जब कभी हम इस पर अफसोस करते थे, तो हमारे मित्र यही तसल्ली देते थे कि यहाँ काम चल रहा है, वहां काम चल रहा है और इसके पूरा होते ही हम 4 घंटे में आजमगढ़ की दूरी तय कर लेंगे। 17 वर्ष के बाद आज भी मेरे मित्र यही तसल्ली दे रहे हैं।
कभी फूलपुर, कभी बादशाहपुर, कभी मोहम्मदपुर हमारे धैर्य की परीक्षा लेता रहा। रानी की सराय तो सदा से वाहन चालकों की चालन क्षमता, धैर्य और पराक्रम की परम कसौटी बना रहा है।
मित्रों मैं अपने सैन्य जीवन काल में दो वर्ष लेह- लद्दाख, कारगिल व सियाचिन ग्लेशियर मे रहा हूँ। वर्ष 1989 की हिमालयन कार रैली को लद्दाख में सपोर्ट करने के लिए मेरी यूनिट को तैनात किया गया था। मुझे दुनिया के सबसे ऊंचे मोटरेबल मार्ग खरदुंग ला और दूसरे सबसे ऊंचे दर्रे चांगला पर भी जिप्सी से जाने का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है, लेकिन मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि इस समय जो भी व्यक्ति अथवा मोटर वाहन इलाहाबाद से आजमगढ़ जाकर सही सलामत इलाहाबाद वापस आ जाए, वह दुनिया के किसी भी क्षेत्र में मोटर रेस मे असफल नहीं हो सकता।
मैं तीन चार दिन से अपने गांव पर था। कल 7 घंटे लगातार कार चलाकर 160 किलोमीटर की दूरी तय करके सकुशल इलाहाबाद पहुंचा। 17 - 18 घंटे बाद भी अंग अंग मे ऐसा दर्द है कि जैसे पुलिस स्टेशन से परम प्रसाद लेकर लौटे हों।
मैं इस अनुभव के लिए सरकार, शासन, प्रशासन व आजमगढ़, जौनपुर और इलाहाबाद के अधिकारियों का आभारी हूं कि उन्होंने बैठे बिठाए मुझे हिमालयन कार रैली का अहसास करा दिया।
कल रात से दर्द की तीन गोलियां खाने और दो बार मालिस कराने के बाद भी बिस्तर से उठने की इच्छा जागृत नहीं हो पा रही है।
एक बार आपभी पधारो ह्मारे गांव (आजमगढ़)
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