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  • Writer's pictureMan Bahadur Singh

अच्छे दिन : शायद कभी नहीं आयेंगे

जबसे राजनीति विशुद्ध व्यवसाय हो गयी, सत्ता में रहने वाला या आने वाला नेता हमें अच्छे दिनों का सब्जबाग दिखाता रहा, लेकिन यह जुमला पिछले कुछ समय से खासकर माननीय मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से ज्यादा मकबूल हो गया I कोई पूछता है कि कहा गए अच्छे दिन, तो कोई बताता है कि अच्छे दिन आ गए I हम सभी अच्छे कर्म करने की बजाय दिन रात केवल अच्छे दिन पर चर्चा करते रहते है I


कोई पूछता है कि पिछले ७० वर्षों में क्या हुआ इस देश में I तो कोई बताता है कि १९४७ में देश में सुई भी नहीं बनती थी, हमने ७० वर्षो में सुई से लेकर अंतरिक्ष यान तक बनाया जबकि पिछले 7- 8 वर्षों में कुछ नहीं हुआ I खैर मैं इस बहस में नहीं उलझना चाहूँगा I ये बहस करने वालों को न तो कुछ अच्छा करना है न तो अच्छा होने देना है I मैं तो कहता हूँ कि जैसे हमारे कर्म हैं, अच्छे दिन शायद कभी नहीं आएंगे I


आजकल एक फैशन हो गया है कि हिंदुस्तान के इतिहास को, सभ्यता को, संस्कृति को, संस्कार को, परम्पराओं को, रीति रिवाजों को, सनातन धर्म को, यहाँ तक कि हमारे महान पूर्वजों और महापुरुषों को गाली दी जाये, नीचा दिखाया जाये, लोगों में हीन भावना पैदा की जाये, अलगाव पैदा किया जाये, हमें अपनी जड़ों से उखाड़कर निम्नतर सभ्यताओं की अंधी नकल के लिए प्रेरित किया जाये I


कुछ नव बुद्धिजीविओं ने तो हमारे महापुरुषों को भी जाति, धर्म और सम्प्रदाय के आधार पर बाँट दिया है I इतना ही नहीं, वह दुसरे वर्ग के महापुरुषों व धर्म, जाति, सम्प्रदाय को नीचा दिखाने के लिए असभ्य, अपमानजनक और आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी करते हैं और समाज में निरंतर तनाव पैदा करने का प्रयास करते रहते हैं I


मैं इसे फैशन नहीं, बल्कि एक सोची समझी साजिश के रूप में देखता हूँ I मेरा अटल विश्वास है कि सनातन धर्म प्राचीनतम और श्रेष्ठतम धर्म है, जो ज्ञान विज्ञान पर आधारित है I जीवन में सहजता और सरलता से इसे अपनाया जा सके , इस लिए इसे कथाओं और परम्पराओं से जोड़ दिया गया I इसमें जड़ता कभी नहीं रही I वाद, संवाद , आलोचना, समालोचना और शास्त्रार्थ के लिए हमारे यहाँ सदा खुला मंच रहा I हमारे पूर्वजों ने समय समय पर रीति रिवाजों और परम्पराओं में सुधार भी किया है I


सनातन व्यवस्था में कर्म के आधार पर वर्ग विभाजन रहा I ये अलग बात है कि उस समय भी कुछ अहमक नवबुद्धिजीवी बकैत रहे, जिनके कारण सनातन धर्म और व्यवस्था में विचलन व् विकृतियाँ आती रहीं I खैर आज का टॉपिक यह नहीं है, इसलिए इसको मैं यहीं ख़त्म करता हूँ I कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक हम ऐसे अहमक और बकैत नव बुद्धिजीविओं का निषेध नहीं करते, अच्छे दिन नहीं आ सकते हैं I


एक बार हमें भारत की अर्थव्यवस्था के इतिहास का अवलोकन जरुर करना चाहिए I भारत एक समय मे सोने की चिडिया कहलाता था। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के अनुसार पहली सदी से लेकर दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विश्व के कुल जीडीपी का 32.9% था ; सन् 1000 में यह 28.9% था ; और सन् १७०० में, जब अंग्रेज इस देश में आ चुके थे, 24.4% था।


ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था का जमकर शोषण व दोहन हुआ जिसके फलस्वरूप 1947 में आज़ादी के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सुनहरी इतिहास का एक खंडहर मात्र रह गई। १९४७ में भारत की जीडीपी मात्र 2.7 लाख करोड़ थी, जो कि विश्व की कुल जीडीपी की महज 3% थी I हमने १९४७ के बाद प्रगति की है, वर्ष २०२० में हमारी जीडीपी १४७.७९ लाख करोड़ रही, जो विश्व जीडीपी का 7.74 % है I इस लिए जो लोग हमारी प्रगति और तकनीकी विकास का श्रेय अंग्रेजो को देते हैं, उन्हें इन आंकड़ों का अध्ययन जरुर करना चाहिए I

देश ने बेहतर किया है, लेकिन फिर भी अच्छे दिन बहुत दूर हैं I अच्छे दिन के मानक पर हम फिर कभी चर्चा करेंगे I फिर भी हम संछेप में कह सकते है कि जिस दिन सभी को रोटी, कपडा, मकान होगा, सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ होगी, सभी को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध होंगी, सभी को रोजगार होगा और देश / प्रदेश में शोषणविहीन, भ्रष्टाचारमुक्त व भयमुक्त शासन प्रणाली होगी, निष्पक्ष मिडिया होगा और पारदर्शी व विश्वसनीय न्याय प्रणाली होगी, समाज में समरसता होगी, वह अच्छे दिन होंगे I


आज देश की क्या स्थिति है, आप सभी को मालूम है, उस पर बहुत कुछ लिखने की जरुरत नहीं है I आज आपदा काल है, त्रासदी है, चारो तरफ हाहाकार है, मौत का तांडव है, इलाज का आभाव है, लाशों का अम्बार है, लूट है खशोट है, संवेदनहीनता हैI अन्यथा भी हम अच्छे दिन के एक भी मानक पूरा नहीं कर पाए हैं I इसकी जिम्मेदारी उन पर भी है, जो मजाक उड़ा रहे हैं, और उन पर भी, जिन्होंने यह नारा दिया और सत्ता में हैं I लेकिन मेरा मानना है कि इस दुर्गति के लिए सबसे अधिक जिम्मेदारी, यदि किसी की है, तो वह है भारत का आम नागरिक की (वह आम आदमी नहीं, जो खास बन चुका है और दिल्ली में राज कर रहा है) यानि हम और आप I मेरी यह दृढ सोच है कि सत्ता पाने के बाद आदमी, आदमी ही नहीं रहता, क्या आम और क्या खास I वह सत्ताधीश हो जाता है I


सत्ता का अपना अलग ही चरित्र होता है I जो भी सत्ता के सिंहाशन पर बैठता है, सत्ता के चरित्र को आत्मसात कर लेता है I कुछ संत प्रवृत्ति के महापुरुष रहे है, जो सत्ता के सिंहाशन पर बैठने के बाद भी सत्ता के चरित्र से निस्पृह रहे, लेकिन वे अपवाद रहे I यद्यपि हर नियम के अपवाद होते है लेकिन अपवादों से नियम नहीं बना करते I


जब लोग अच्छे दिन की बात करते हैं, तो ज्यादातर के जेहन में यही सोच होती है कि यह देश और प्रदेश की सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अच्छे दिन लाये और सारी सुख सुविधा मुफ्त में हमारे दरवाजे तक पहुंचा दे I बात जब अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार की उठती है तो हम चाहते हैं कि हमारे अलावा सभी लोग अनुशासित और ईमानदार हों I प्रश्न जब नागरिक कर्तव्यों का हो, त्याग और बलिदान का हो, तो वहां भी हम अपने को छोड़कर सारी दुनियां से अपेक्षा करते हैं I हम या हमारे लोग जब मुशीबत में हों, तो हम चाहते हैं कि हर कोई मदद के लिए आगे आ जाये, लेकिन जब हम किसी पर जुर्म, अपराध, ज्यादती होते देखते हैं या सड़क के किनारे किसी घायल व्यक्ति को देखते हैं तो हम उसे अनदेखा करके आगे बढ़ जाते हैं की कौन इस लफड़े में पड़े I

हम सभी चाहते हैं कि हमारी माँ , बहन व बेटियां जब बाहर जाएँ, तो उनके साथ अभद्रता, अशिष्टता, छेड़ छाड़ या अपराध न हों, लेकिन हम स्वयं कुदृष्टिग्रस्त होते हैं, हम अपने लड़को को कभी नहीं सिखाते या आगाह करते हैं कि बहार निकलने के बाद महिलाओं के प्रति उनका व्यवहार कैसा होना चाहिए I हम गुंडे, मवालियों और असामाजिक तत्वों के खिलाफ कभी नहीं खड़े होते कि जाने दो कौन इस झंझट में पड़े और इसी का नतीजा है कि महिलाओं के प्रति अपराध बढ़ते जा रहे हैं I हम एक कायर और डरपोक कौम बनकर रह गए हैं I


हम ट्रैफिक नियमो का स्वयं कभी पालन नहीं करना चाहते, जब तक कि मजबूरी न हो यानि पुलिस वाला डंडा लेकर न खड़ा हो या चालान का डर न हो, लेकिन हम हमेशा दूसरों से अपेक्षा करते हैं कि वह नियमों का पालन करे I रेलवे क्रासिंग पर हम अपनी लेन की लाइन में कभी खड़े नहीं होते, येन केन प्रकारेण बैरियर तक आउट ऑफ़ लेन जाकर जाम लगा देते हैं और स्वयं और दूसरों को घंटों जाम में फसाते हैं I

आज गुंडे, माफिया, अपराधी हमारे हीरो हो गए हैं I समाज में उनकी इज्जत हो रही हैI उनके जनाजे में इतनी भीड़ होती है की उतनी किसी शहीद के जनाजे में न हो I यह हमारा मानसिक स्तर हो गया है I स्वाभाविक है कि नई पीढ़ी उनकी तरह गुंडा बनने का सपना देखेगी I यह दुखद स्थिति है I


हम मजबूरी में तभी तक ईमानदार हैं, जब तक कि हमें बेईमानी का अवसर न मिल जाये I इस आपदा ने हमारे समाज की कलई खोलकर रख दी I हमने सिद्ध कर दिया कि हमें बस अवसर मिल जाये, तो हम चोरी, लूट, खशोट, बेईमानी, भ्रष्टाचार, कालाबाजारी के नए कीर्तिमान स्थापित कर सकते हैं I हम शर्मिंदा नहीं होंगे बेसक मानवता शर्मिंदा हो जाये I बेशक जानवर भी शर्मिंदा हो जाएँ I हमने हर मानवीय मर्यादा को तिलांजलि दे दी फिर भी अच्छे दिन खोज रहे हैं I सरकार चलाने वाले राजनेता, अधिकारी व कर्मचारी भी तो इसी समाज से निकलकर जा रहे हैंI जब कुंएं में ही भांग पड़ी हो तो उसमे से निकला पानी कैसे सुद्ध रह सकता है I


मैं निराशावादी व्यक्ति नहीं हूँ I मैं ये भी जानता हूँ कि देश में अच्छे लोग भी हैं, भले ही संख्या में कम हों और कदाचित ऐसे ही लोगों की वजह से हम आज भी तमाम देशों से बेहतर कर रहे हैं I समाज के लिए अच्छा सोचने और करने का जज्बा बहुत लोगों में हमने देखा है I उनसे बात करने पर यही लगता है कि समाज खुदगर्ज राजनेताओं के जाल में इस कदर फंसा हुआ है कि सर्व समाज के लिए काम करने वाले ईमानदार लोग अप्रासंगिक हो गए हैं I एक समय था, जब राजनीति में वकील, डॉक्टर, प्रोफेसर, शिक्षक, किसान और मजदूर सभी की भागीदारी थी I दोस्तों के दिए पजामा कुरता पहनकर और थोड़े मोड़े चंदे के बल पर अच्छे लोग चुनाव जीतकर संसद और विधान सभाओं में पहुँच जाते थे, लेकिन आज आम आदमी राजनीति में अप्रांसगिक हो गया है I कम से कम वह संसद या विधान सभा में तो नहीं ही पहुँच सकता है I


हमने एक समाज में एक ईन्सान के रूप में रहने के लिए जरुरी सोच समझ व गुणों को छोड़कर मानवेतर जीवों, यहाँ तक की जानवरों से भी बदतर सोच समझ को धारण कर लिया हैI हमारी दिक्कत यह है कि हम सम्भ्रांत व संपन्न राष्ट्रों की श्रेणी में तो आना चाहते हैं, लेकिन उन्होंने इस मुकाम तक की यात्रा को पूरी करने के लिए किस तरह की सोच समझ विकसित की और अपनाई, हम इसका अध्ययन नहीं करते और न ही उसे अपनाने की मंशा रखते हैं I


मेरा अटल विश्वास है की जब तक हम नहीं सुधरेंगे, तब तक समाज नहीं सुधरेगा और जब तक समाज नहीं सुधरेगा, कोई भी सरकार अच्छे दिन नहीं ला सकेगी Iबल्कि मुझे अंदेशा है कि यदि हम नहीं सुधरे तो आने वाले दिन, बहुत ही बुरे होंगे I

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