दुखद परिदृश्य है कि केंद्र सरकार लोकतंत्र की बहाली के लिए उन्हें आमंत्रित की है, जो जम्मू कश्मीर को पीढियों से लूटते रहे, जो वादी मे लाखों कशमीरी हिन्दुओं, सिखों और हिन्दुस्तानपरस्त मुसलमानों के कत्ल, बलात्कार और पलायन के मूकदर्शक रहे हैं, जो पाकिस्तान परस्त दहशतगर्दों और आतंकवादियों के हमदर्द रहे हैं, जिन्होंने कभी हिन्दुस्तान को अपना मुल्क नहीं समझा।
आज जिनको खुद कश्मीर के लोग नहीं पूछ रहे हैं, जो खुद कश्मीर में घर से बाहर निकलने का साहस नहीं कर पा रहे हैं, जिन्होंने हमेशा हिन्दुस्तान से छल किया है, सरकार एक बार फिर उन्हें नव जीवन प्रदान कर रही है।
और तुर्रा यह कि वह दिल्ली आने से पहले यह शर्त रख रहे हैं कि इस मसले पर समाधान के लिए पाकिस्तान से बातचीत की जाए।
शर्त यह कि उन्हें 370 और 35-ए की बहाली से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। शर्त यह कि जम्मू कश्मीर की 5 अगस्त 2019 के पहले की स्थिति बहाल की जाए।
हमने अपना पेट काटकर जिस कश्मीर को पुष्पित पल्लवित रखने के लिए अतिरिक्त संसाधन दिए, जिसके लिए हमने लाखों वीर सपूतों की शहादत दी है, जिसके लिए हमारे सपूत आज भी अपना लहू बहा रहे हों, हम दुनिया को दिखाने के लिए कश्मीर को गद्दारों के हवाले नहीं कर सकते।
हमें इन पाखंडियों की एक भी शर्त मंजूर नहीं है।
और सबसे बड़ी विडंबना यह कि लाखों विस्थापित कश्मीरियों की बात रखने के लिए एक भी संगठन संस्था या व्यक्ति को बुलाना आवश्यक नहीं समझा गया। क्या उनकी राय इस सरकार के लिए कोई माने मतलब नहीं रखती। यह सबसे दुखद है।
आज कुछ राजनीतिक दल, जिन्हें यह मुगालता है कि 370 और 35-ए हटाने की बात करने से और गद्दारों की हां मे हां मिलाने से उन्हें हिन्दुस्तान के मुसलमानों का वोट मिल जाएगा, तो मुझे यकीन है कि उनका मुगालता जरूर टूटेगा।
कश्मीर से बाहर बैठकर कश्मीर पर नाटक नौटंकी करना आसान है, लेकिन जो अपनी शहादत देकर और दिन रात जोखिम उठाकर कश्मीर में भारत का तिरंगा उठा रखें हैं, हम उनकी भावनाओं, उनके त्याग और उनके बलिदान को शर्मसार नहीं कर सकते।
जो कश्मीर मे 370 और 35-ए की बहाली की बात करते हैं, जो कश्मीर मे पाकिस्तान को आवश्यक पक्षकार मानते हैं, ऐसे लोग कम से कम मेरे लिए स्वीकार्य नहीं हो सकते।
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