स्वाभाविक है कि हम सभी का जबाब होगा देश। मैं मानता हूँ कि बहुसंख्य हिन्दुस्तानियों के लिए सबसे उपर देश है, उसके बाद उनका परिवार, समाज, राजनीति व अन्य सरोकार। लेकिन मेरा व्यक्तिगत मानना है इस देश की दशा और दिशा को सबसे अधिक प्रभावित करने वाले ज्यादातर राजनीतिज्ञों के लिए देश सबसे आखिरी पादान पर होता है और राजनीति सबसे उपर।
मैं देशभक्त, देशद्रोही, अन्धभक्त आदि प्रचलित शब्दों को परिभाषित करने मे न तो सक्षम हूँ और न ही इन शब्दों को लेकर तू तू मैं मैं करने की मनोस्थिति मे हूँ। लेकिन ये मत कहिएगा कि इस देश में परजीवी नहीं हैं या देशद्रोही नहीं हैं। हैं और बहुत बड़ी तादात में हैं। ऐसे लोग हर जगह हैं हर रूप में हैं, फौजी के रूप में, वकील के रूप में, डाक्टर के रूप में, किसान के रूप में, मजदूर के रूप में, अधिकारी के रूप में, कर्मचारी के रूप में और राजनेता के रूप में भी।
निश्चित है देश कोरोना से उभर कर जब सामान्य जन जीवन की तरफ बढ़ चला था कि अचानक भीषण त्रासदी के साथ दूसरी लहर देश की दशा और दिशा को बेहाल कर देती है। इस भीषणतम तबाही के दौरान किसी भी राजनीतिक दल के नेता और कार्यकर्ता जमीन पर दिखाई नहीं दिए, अलबत्ता बयानबाजी करते जरूर दिखे।
सोसल साइट्स पर प्रतिक्रियाएं आने के बाद पिछले दो चार दिनों से कुछ राजनीतिक दलों की सक्रियता के समाचार मिल रहे हैं। देर आए, दुरुस्त आए। सेवा करिए, देश को त्रासदी से बाहर निकलने मे सहयोगी बनिए, स्वागत योग्य है। साधुवाद है।
देश दूसरी लहर से लगातार संघर्ष करते हुए इससे बाहर निकलकर किनारे की कगार पर है। लेकिन कुछ परजीवी, कुछ देशद्रोही, जिनमें कुछ राजनीतिज्ञ भी हैं, पत्रकार भी हैं और मुर्दाखोर गिद्ध भी, वह देश को पटरी पर लौटते नहीं देखना चाहते। उनकी मंशा है कि देश को गर्त में पहुंचा कर राजनीतिक बदलाव किया जाए।
दुनिया में बहुत से लोकत्रांतिक देश हैं, जहाँ लोकतंत्र की जड़ें बेहद गहरी हैं, मसलन अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी लेकिन हमने वहां विपक्षी राजनीति को इस स्तर तक आते नहीं देखा कि सरकार और देश को बदनाम करने के लिए बकायदा टूलकिट जारी कर दिया जाए।
इस देश की बहुसंख्य जनता ने बहुमत से पांच साल के लिए किसी को देश की बागडोर दी है, उसे काम करने दीजिए। आपको विपक्ष की भूमिका दी गई है, उसे सम्मान से शिरोधार्य करिए। एक सशक्त विपक्ष की सकारात्मक भूमिका निभाइये। जिस जनता ने आज सत्ता दी है, कल उनको सत्ता से बाहर भी फेक सकती है। विपक्षी दलों को थोड़ा धैर्य व संयम रखना चाहिए।
मैं नहीं मानता कि सत्तारूढ़ सरकार या दल की आलोचना देशविरोधी हरकत है। लेकिन हर चीज की एक सीमा तो जरूर होती है। सरकार का विरोध करते करते जब हम देश के हितों का और देशवासियों के हितों को प्रभावित करने लगते हैं तो निश्चित ही हम राष्ट्रवादी होने का दावा खो देते हैं।
आज फिर से किसान आन्दोलन जागृत हो गया। आज देश रोटी के लिए तड़प रहा है, दवा के लिए तड़प रहा है, आक्सीजन के लिए तड़प रहा है, मृतक सम्मानजनक अन्तिम संस्कार के लिए तरस रहे हैं, कोरोना अभी भी विकराल बना हुआ है, ऐसे में एम.एस.पी. का राग छेड़कर देश को पामाल करने की कोशिश कतई सराहनीय नहीं है।
हम भूतपूर्व सैनिकों को 74 वर्ष बाद भी वन रैंक वन पेंशन नहीं मिली, उसे लेकर आज हम भी जन्तर मन्तर के लिए कूच करें, तो क्या यह देश हमें माफ करेगा। सरकारी कर्मचारियों के साथ साथ हम भूतपूर्व सैनिकों व अन्य पेन्शनर का भी डी.ए. फ्रीज किया गया है। लाखों करोड़ रुपए लोगों को बंट रहा है, आज हम अपने डी.ए. के लिए आन्दोलन शुरू करें, तो क्या देश हमें शाबाशी देगा। नहीं।
हर बात का एक माकूल समय होता है और जब माकूल समय पर चीजें होती हैं, तो अच्छा लगता है और उसके परिणाम भी सार्थक होते हैं।
हमारे यहाँ देहाती मशल है कि खुर्पी की शादी में हंसिया का गीत नहीं सुहाता है।
इस हमय राजनीति छोड़कर मिलकर देश को इस त्रासदी से बाहर निकालने का सार्थक और इमानदार प्रयास किया जाना चाहिए। देश सक्षम, समर्थ व खुशहाल रहेगा तो राजनीति के लिए बेहतर अवसर मिलेंगे।
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